अति या इति ?

“मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती”. जब भी भारतीय किसान के बारे में बात छिड़ती हैं, तो मन में यही चित्र उभरता है: एक आदर्ष किसान, एक परिवार- पत्नी, माँ, बाप, एक लड़का, एक लड़की, कम से कम एक जोड़ा बैल जिसे प्यार से किसान बुलाता है – हीरा-मोती , या राम-श्याम, या फिर चंदू-नंदू और एक गाय जो की परिवार को दूध देती हैं. हम सोचते हैं की किसान का जीवन कड़ी मेहनत का ज़रूर है लेकिन वह उसे आनंदौललास से निभाता हैं. मिट्टी उसकी माँ हैं और ये काम उसके बाप दाद्दाओ से चला आ रहा हैं. अंत में उसे वरदान मिलता है और उसका दृढ संकल्प रंग लाता ही है. इसी अचल व्यक्तित्व के कारण ही तो प्रधान मत्री लाल बहदुत शास्त्री ने हमें नारा दिया – “जय जवान, जय किसान”. यही छवि हैं ना किसान की हमारे हृदय में ? हमारे देश को भोजन प्रदान करने वाला, देश की उन्नति में तुरंत सहभागी, हमारा भारतीय किसान.

तब फिर क्या कारण है की आज हर तीस मिनट में एक भारतीय किसान आत्म-हत्या करता हैं? क्या कारण है की जो कीटनाशक वह खेत में उपयोग करने के लिए खरीदता है, उसी को पी कर तड़प तड़प के मरता हैं? क्या कारण है की उसका परिवार उसके मरने के कुछ समय बाद ही भूमिहीन हो जाता हैं? क्या कारण हैं की अगर वह बैल रखता भी है, तो उन्हें कोई नाम नहीं देता? क्या कारण है की बच्चो के लिए दूध के नाम पर किसान की पत्नी पहले हंसती है फिर रोंती हैं?

क्या कारण है की इतनी चोट खाने के बाद जब किसान मृत्यु को गले लगाता हैं, तब भी उसका निरादर जारी रहता हैं? वही भ्रष्ट -प्रणाली जो की जीतें-जी उसकी सादगी का शोषण करती है और उसकी दुर्गति तक का लाभ उठाती है, उसकी मौत के बाद उसके शव का अपमान करती हैं.

किसान के मरने के बाद उसके साथ क्या होता है, इसकी एक झलक दिखाने का प्रयास है यह विडियो. मौत के बाद भी जिसे करूणा नहीं मिलती, जीवन रहते उसकी पीड़ा कैसी होगी, शायद आप अंदाजा लगा सके.